जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ, तो घर के अक्सर छोटे भाई बहनों को बहुत तंग करता था, कभी चिकोटी काट लेता, कभी सर पर ऊँगली बजा देता और वो रोने लगते. ऐसा नहीं था की मुझे उनसे प्यार नहीं था, लेकिन मैं स्वभाव से ऐसा ही हूँ. मुझे बच्चों को तंग करना बहुत अच्छा लगता था. एक मेरी छोटी चाची ने खीझ कर मुझसे कहा की जब अपना बच्चा होगा तब देखना आप कितना प्यार करेंगे उससे . मैं अक्सर इस बात को हंस कर टाल देता की जब वक़त आएगा तबकी तब देखि जायेगी. पर वक़्त कहाँ किसके लिए रुकता है जो मेरे लिए रुकता . समय के साथ मैं भी बड़ा हुआ , पढ़ाई पूरी की, नौकरी की और मेरी शादी हुई. शादी के कुछ महीने तो ऐसे निकले जैसे समय को पंख लगे हों.
शादी के लगभग छह महीने ही बाद एक दिन मेरी पत्नी ने फ़ोन करके बताया की मेरी तबियत ठीक नहीं है, मुझे लगा हो सकता है बाहर का कुछ खा लिया हो इसलिए उल्टियां हो रही होंगी. मैंने कहा कोई बात नहीं तुम आराम करो. लेकिन शाम को उसने मुझे बताया की वो गर्भवती है.ये सुन कर, मैं ख़ुशी से अपनी सीट से उछल गया, एक पल को तो ऐसा लगा की ये खबर कोई स्वप्न जैसा हो. सच मुझे बहुत अच्छा लगा था सुनकर. घर पहुंचा तो वो भी बहुत खुश थी लेकिन उल्टियों ने उसके चेहरे पर थकान का भाव ला दिया था. खैर धीरे धीरे वक़्त बीतता चला गया. लेकिन बीतते वक़्त ने मुझे ये अहसास कराया की माँ बनना इतना भी आसान नहीं है. कैसे स्त्रियां नौ महीने सब परेशानियों को झेल कर माँ बनने का सुख लेती हैं. सच में अविश्वसनीय ही है ये सब. लेकिन इन तकलीफों ने मेरे दिल में स्त्रियों के प्रति मान और इज्जत का भाव और भी बढ़ा दिया. जब भी अपनी माँ के बारे में सोचता तो यही लगता की मेरी भी माँ ने इतना ही सब कुछ झेला होगा या फिर शायद इससे भी ज्यादा, क्यूंकि तब गाओं में महानगरों जैसे चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध नहीं थी.
अब मेरी पत्नी गर्भावस्था के सातवें महीने में आ गयी थी और मेरी माँ भी उसकी मदद करने को. लेकिन मेरे पिताजी को लगा की अगर उनकी बहु धनबाद ही चली आये तो बहुत अच्छा रहेगा. अतः न चाहते हुए भी मुझे अपनी पत्नी को धनबाद भेजना पड़ा. धीरे धीरे दिन बीते और महीने भी . नौ महीनो का लम्बा सफर ख़तम हुआ और वो आज अस्पताल में भर्ती हुई थी. पता चला सुबह के ढेड़ बजे के आस पास में एक प्यारी सी बेटी का पिता बना हूँ. सच बताऊँ उस पल से मेरा नजरिए लड़कियों के प्रति बिलकुल बदल गया शायद इसलिए की में अब एक पुत्री का पिता बना था इसलिए या कुछ और वजह थी इसके पीछे मुझे नहीं पता. पर
जो भी हो अब मैं बाप बन चूका था. पत्नी से मिलने की बहुत इच्छा हो रही थी लेकिन उससे भी ज्यादा मुझे रोमांचित कर रहा था एक सोच, की जब मैं पहली बार उस छोटी सी बच्ची को हाथ में उठाऊंगा तो मुझे कैसा लगेगा? जब वो मेरी उँगलियों को पकड़ेगी तब मुझे कैसा महसूस होगा ? पता नहीं क्यों अक्सर ऐसे ख्याल मुझे आते रहते. ऑफिस आते जाते कोई छोटी बच्ची दिख जाती तो बहुत प्यार आता उस बच्ची पर . १० दिन हो गए थे सिर्फ मैंने मोबाइल पर ही आवाज़ सुनी थी सोमा की, हाँ प्यार से सब ने घर में उसका नाम सोमा रखा है . आज पिताजी से बात हुई है . उन्होंने मुझे बुलाया है धनबाद. मैंने जल्दी से टिकट बुक करवाया और कल शाम की ट्रैन है. ट्रैन में बैठ चूका हूँ लेकिन पूरा ध्यान ट्रैन की स्पीड पर ही है , पता नहीं सुपरफास्ट ट्रैन की स्पीड पैसेंजर ट्रैन की क्यों हो गयी? घर पहुँचने की हड़बड़ी है या कुछ और पता नहीं . अब ट्रैन में बैठ गया हूँ तो देर सवेर घर तो पहुँच ही जाऊंगा . सुबह ११ बजे के आस पास घर पहुंचा. माँ ने बताया की पहले नहा लो उसके बाद बच्ची को गोद में लेना. अब नहाना भी पड़ेगा ये सोच कर बिना समय ख़राब किये मैं नहाने चला गया . अब और सब्र नहीं है मुझमें . पत्नी के कमरे में गया , सोमा अभी जगी हुई थी . बहुत बहुत प्यारी लग रही थी मेरी बेटी. बड़ी बड़ी आँखें बिलकुल अपनी माँ के जैसे और रंग मेरा लिया है उसने .उसकी छोटी छोटी उंगलिया , छोटे छोटे हाथ और छोटे छोटे पैर . एक बार तो लगा की क्यों न एक बार चिकोटी काट कर देखूं, पता नहीं कैसे रोयेगी, अभी वो बोल तो नहीं सकती थी १० दिन की ही तो है लेकिन आवाज़ सुनने की इच्छा हो रही थी, लेकिन हाथ पीछे मैंने खिच्च लिया. मुझे अपनी चाची की बात याद आ गयी. वो सही ही कहती थीं की जब अपना बच्चा होगा तब .................................शायद वो सही थीं.
जैसे ही मैंने उसे अपने हाथ में उठाया मेरा पूरा शरीर सिहर सा गया . मैं उस सिहरन को शब्दों में नहीं लिख सकता , बस एक भाव जिसे सिर्फ मैंने महसूस किया पहली बार.
इससे भी पहले मैंने कई बच्चों को अपने गोद में खेलाया है पर ऐसी सिहरन तो कभी नहीं हुई थी.
पर अब जो भी है मैं एक बेटी का पिता तो बन ही चूका हूँ. ईश्वर तुम्हें दुनिया के सारे सुख दें मेरी बिटिया , बहुत बहुत प्यार तुम्हें .
शादी के लगभग छह महीने ही बाद एक दिन मेरी पत्नी ने फ़ोन करके बताया की मेरी तबियत ठीक नहीं है, मुझे लगा हो सकता है बाहर का कुछ खा लिया हो इसलिए उल्टियां हो रही होंगी. मैंने कहा कोई बात नहीं तुम आराम करो. लेकिन शाम को उसने मुझे बताया की वो गर्भवती है.ये सुन कर, मैं ख़ुशी से अपनी सीट से उछल गया, एक पल को तो ऐसा लगा की ये खबर कोई स्वप्न जैसा हो. सच मुझे बहुत अच्छा लगा था सुनकर. घर पहुंचा तो वो भी बहुत खुश थी लेकिन उल्टियों ने उसके चेहरे पर थकान का भाव ला दिया था. खैर धीरे धीरे वक़्त बीतता चला गया. लेकिन बीतते वक़्त ने मुझे ये अहसास कराया की माँ बनना इतना भी आसान नहीं है. कैसे स्त्रियां नौ महीने सब परेशानियों को झेल कर माँ बनने का सुख लेती हैं. सच में अविश्वसनीय ही है ये सब. लेकिन इन तकलीफों ने मेरे दिल में स्त्रियों के प्रति मान और इज्जत का भाव और भी बढ़ा दिया. जब भी अपनी माँ के बारे में सोचता तो यही लगता की मेरी भी माँ ने इतना ही सब कुछ झेला होगा या फिर शायद इससे भी ज्यादा, क्यूंकि तब गाओं में महानगरों जैसे चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध नहीं थी.
अब मेरी पत्नी गर्भावस्था के सातवें महीने में आ गयी थी और मेरी माँ भी उसकी मदद करने को. लेकिन मेरे पिताजी को लगा की अगर उनकी बहु धनबाद ही चली आये तो बहुत अच्छा रहेगा. अतः न चाहते हुए भी मुझे अपनी पत्नी को धनबाद भेजना पड़ा. धीरे धीरे दिन बीते और महीने भी . नौ महीनो का लम्बा सफर ख़तम हुआ और वो आज अस्पताल में भर्ती हुई थी. पता चला सुबह के ढेड़ बजे के आस पास में एक प्यारी सी बेटी का पिता बना हूँ. सच बताऊँ उस पल से मेरा नजरिए लड़कियों के प्रति बिलकुल बदल गया शायद इसलिए की में अब एक पुत्री का पिता बना था इसलिए या कुछ और वजह थी इसके पीछे मुझे नहीं पता. पर
जो भी हो अब मैं बाप बन चूका था. पत्नी से मिलने की बहुत इच्छा हो रही थी लेकिन उससे भी ज्यादा मुझे रोमांचित कर रहा था एक सोच, की जब मैं पहली बार उस छोटी सी बच्ची को हाथ में उठाऊंगा तो मुझे कैसा लगेगा? जब वो मेरी उँगलियों को पकड़ेगी तब मुझे कैसा महसूस होगा ? पता नहीं क्यों अक्सर ऐसे ख्याल मुझे आते रहते. ऑफिस आते जाते कोई छोटी बच्ची दिख जाती तो बहुत प्यार आता उस बच्ची पर . १० दिन हो गए थे सिर्फ मैंने मोबाइल पर ही आवाज़ सुनी थी सोमा की, हाँ प्यार से सब ने घर में उसका नाम सोमा रखा है . आज पिताजी से बात हुई है . उन्होंने मुझे बुलाया है धनबाद. मैंने जल्दी से टिकट बुक करवाया और कल शाम की ट्रैन है. ट्रैन में बैठ चूका हूँ लेकिन पूरा ध्यान ट्रैन की स्पीड पर ही है , पता नहीं सुपरफास्ट ट्रैन की स्पीड पैसेंजर ट्रैन की क्यों हो गयी? घर पहुँचने की हड़बड़ी है या कुछ और पता नहीं . अब ट्रैन में बैठ गया हूँ तो देर सवेर घर तो पहुँच ही जाऊंगा . सुबह ११ बजे के आस पास घर पहुंचा. माँ ने बताया की पहले नहा लो उसके बाद बच्ची को गोद में लेना. अब नहाना भी पड़ेगा ये सोच कर बिना समय ख़राब किये मैं नहाने चला गया . अब और सब्र नहीं है मुझमें . पत्नी के कमरे में गया , सोमा अभी जगी हुई थी . बहुत बहुत प्यारी लग रही थी मेरी बेटी. बड़ी बड़ी आँखें बिलकुल अपनी माँ के जैसे और रंग मेरा लिया है उसने .उसकी छोटी छोटी उंगलिया , छोटे छोटे हाथ और छोटे छोटे पैर . एक बार तो लगा की क्यों न एक बार चिकोटी काट कर देखूं, पता नहीं कैसे रोयेगी, अभी वो बोल तो नहीं सकती थी १० दिन की ही तो है लेकिन आवाज़ सुनने की इच्छा हो रही थी, लेकिन हाथ पीछे मैंने खिच्च लिया. मुझे अपनी चाची की बात याद आ गयी. वो सही ही कहती थीं की जब अपना बच्चा होगा तब .................................शायद वो सही थीं.
जैसे ही मैंने उसे अपने हाथ में उठाया मेरा पूरा शरीर सिहर सा गया . मैं उस सिहरन को शब्दों में नहीं लिख सकता , बस एक भाव जिसे सिर्फ मैंने महसूस किया पहली बार.
इससे भी पहले मैंने कई बच्चों को अपने गोद में खेलाया है पर ऐसी सिहरन तो कभी नहीं हुई थी.
पर अब जो भी है मैं एक बेटी का पिता तो बन ही चूका हूँ. ईश्वर तुम्हें दुनिया के सारे सुख दें मेरी बिटिया , बहुत बहुत प्यार तुम्हें .
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